प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोतों का वर्णन कीजिए Pdf

ClassB.A Semester 1
SubjectHistory Major
Unit 1 भारतवर्ष की अवधारणा ( Concept of Bharatvarsha )
Topicस्रोतों का सर्वेक्षण ( Survey of Sources )
UniversityFor all Bihar University




उत्तर : वह साहित्य जो हमें अतीत के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है, साहित्यिक स्रोत कहलाता है ।  प्राचीन भारतीय इतिहास के अनेक  साहित्यिक स्रोत हैं । यद्यपि प्राचीन भारतीयों में इतिहास-लेखन की वैसी श्रृंखलाबद्ध परम्परा नहीं थी, जैसा हम प्राचीन यूनान या रोम में पाते हैं, तथापि प्राचीन भारत में विभिन्न विषयों से संबद्ध अनेक ऐसे ग्रन्थों की रचना हुई, जो प्राचीन इतिहास की जानकारी उपलब्ध कराते हैं । इन ग्रंथों की विषयवस्तु, धर्म; सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन और प्रशासनिक व्यवस्था आदि से संबद्ध है । अनेक काव्यों, महाकाव्यों और नाटकों की भी रचना प्राचीन भारत में हुई, जो तत्कालीन अवस्था की जानकारी प्रदान करते हैं । साहित्यिक स्रोत को  मुख्य रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है— (1) धार्मिक ग्रंथ (2) धर्मनिरपेक्ष ।

धार्मिक ग्रंथ –

 वे साहित्य जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धर्म से प्रभावित होते हैं, धार्मिक ग्रंथ स्रोत्र कहलाते हैं | प्राचीन भारत का अधिकांशत: साहित्य धार्मिक ही है । इसका कारण यह है कि प्राचीन भारत में धर्म का व्यापक प्रभाव था । इन धार्मिक ग्रंथों में इतिहास से सम्बन्धित राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक सामग्री भी प्राप्त होती है । यही कारण है कि इन्हें प्राचीन इतिहास का स्रोत माना जाता है । अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इन धार्मिक ग्रन्थों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है— ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थ ।




(a) ब्राह्मण धार्मिक ग्रंथ – प्राचीन भारत के ब्राह्मण ग्रंथों में वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, पुराण, वेदांग, स्मृतियाँ और महाकाव्य सर्वप्रमुख हैं ।

  • वेद – ब्राह्मण धार्मिक ग्रंथों में वेदों का प्रथम स्थान है । वेद की गणना विश्व साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ के रूप में की जाती है । वेद विश्व की प्रथम रचना हैं । ‘वेद’ शब्द का अर्थ है ‘ज्ञान’ । प्राचीन भारतीय ऋषियों का ज्ञान वेदों में समाहित है । वेद संख्या में चार हैं— ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद । इनमें ऋग्वेद प्राचीनतम है और इसका रचना काल 1500-1000 ईसा पूर्व माना जाता है ।
  • ब्राह्मण ( ब्रह्म साहित्य ) – इन ग्रन्थों में आर्यों की यज्ञ क्रिया का विशद् वर्णन किया गया है । ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ है यज्ञ । अतः यज्ञ सम्बन्धी इस साहित्य को ब्रह्म साहित्य या ‘ब्राह्मण’ कहा गया ।
  • आरण्यक — ‘आरण्य’ शब्द का अर्थ वन है । चूँकि इन ग्रंथों का अध्ययन वनों में किया जाता था । यही कारण रहा कि इन्हें ‘आरण्यक’ कहा गया । इन ग्रन्थों में यज्ञवाद के स्थान पर चिन्तनशील ज्ञान की स्थापना की गई । संख्या की दृष्टि से आरण्यक सात हैं |
  • उपनिषद् – ‘उपनिषद्’ शब्द का अर्थ है ‘समीप बैठना । इन ग्रन्थों में दर्शन तथा आध्यात्म का गम्भीर चिन्तन है । इनका मुख्य विषय ‘ज्ञान की जिज्ञासा’ और ‘परमब्रह्म’ की स्थापना है । उपनिषदों को ‘ब्रह्मविद्या’ भी कहा गया है ।
  • वेदांग– वेदांग प्राचीन इतिहास के स्रोत हैं । जिनकी संख्या 6 है और ये वेदों से सम्बन्धित हैं । यही कारण है कि इन्हें वेदों का अंग या वेदांग कहा गया है ।
  • स्मृति साहित्य – ब्राह्मण धर्म ग्रंथों में ‘धर्मशास्त्रों’ का, जिन्हें स्मृतियों के नाम से भी जाना जाता है, विशेष स्थान है । इनसे हिन्दू समाज के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती हैं । उनके जीवन यापन और आर्थिक गतिविधियों को जानने में ये ग्रंथ महत्वपूर्ण हैं ।
  • महाकाव्य -वैदिक साहित्य के बाद महाकाव्यों का मुख्य स्थान है । महाकाव्यों के अन्तर्गत ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ आते हैं ।




(B) बौद्ध धर्म-ग्रन्थ –

बौद्धों के अनेक धर्म-ग्रन्थ पाली तथा संस्कृत भाषाओं में प्राप्त होते हैं । यद्यपि इन ग्रन्थों का प्रधान विषय धर्म का उपदेश है और इनमें धार्मिक सिद्धान्तों तथा धार्मिक कथाओं का वर्णन किया गया है फिर भी इनमें पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री समाहित हैं । बौद्ध विद्वानों ने लौकिक पक्ष को भी महत्व दिया है ।

  • पिटक साहित्य – बौद्ध धर्म के मुख्य ग्रंथ पिटक हैं । इनके अन्तर्गत विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक हैं । ‘पिटक’ का अर्थ होता है टोकरी । विनय पिटक में भिक्षु और भिक्षुणियों के लिये अनुशासन सम्बन्धी नियम हैं । सुत्तपिटक में बुद्ध के उपदेशों का सार दिया गया है । अभिधम्म पिटक में महात्मा बुद्ध के जीवन तथा विचारों का वर्णन है ।
  • जातक – बौद्ध ग्रन्थों में ‘जातकों’ को प्राचीनतम माना जाता है । जातक कथाओं में गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों का वर्णन है जब वे ‘बोधिसत्व’ की स्थिति में थे । जातक कथाओं की संख्या 549 है । इन कथाओं मैं तत्कालीन समाज का वर्णन मिलता है ।
  • मिलिन्दपन्हो – यह पाली भाषा में है । ये मिनेन्डर के काल की रचना है । इसमें तत्कालीन समाज के चित्रण के अलावा बौद्ध धर्म के विवादग्रस्त विषयों का वर्णन है ।
  • अन्य ग्रन्थ- दीप वंश और महा वंश की रचना श्रीलंका में हुई थी । यद्यपि इन ग्रन्थों में अतिरंजित कल्पनायें हैं फिर भी इनमें महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री है ।




(c) जैन ग्रंथ

जैन धर्म-ग्रन्थों में प्राचीन भारतीय इतिहास की प्रचुर सामग्री समाहित है । राजबली पाण्डेय लिखते हैं, “एक दृष्टि से कहा जा सकता है कि बिना जैन ग्रन्थों के अध्ययन के भारतीय संस्कृति के इतिहास में पूर्णता नहीं आ सकती है क्योंकि इस साहित्य में हमें प्राचीन भारत के कुछ ऐसे पक्षों का परिचय मिलता है जिनकी ब्राह्मण या बौद्ध साहित्य में या तो चर्चा ही नहीं है या अगर है तो बहुत अल्प | जैन ग्रंथ ‘आगम’ साहित्य सर्वप्रमुख है । इनके अतिरिक्त भद्रबाहुचरित, परिशिष्टपर्वन, पुण्याश्रय कथाकोष आदि अन्य प्रसिद्ध ग्रंथ हैं । अन्य जैन ग्रंथ हैं – वसुदेवहिण्डी, बृहत्कल्पसूत्र भाष्य, आचारंगसूत्र, आवश्यकचूर्णि, ज्ञाताकर्म, भगवती सूत्र आदि ।

 धर्मनिरपेक्ष

वे साहित्य जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धर्म से प्रभावित नहीं होते हैं, धर्मनिरपेक्ष स्रोत्र कहलाते हैं | अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इनेह दो  श्रेणियों में विभाजित किया गया है— (1) लोक साहित्य तथा जीवन चरित्र  (2) विदेशी साहित्य

(1)लोक साहित्य तथा जीवन चरित्र : इसके अन्तर्गत कौटिल्य का अर्थशाख , गार्गी संहिता , मुद्रा राक्षस , अष्टाध्यायी तथा महाभाष्य , कालिदास के ग्रंथ , गुजरात और सिंध के स्थानीय इतिहास , जीवन चरित्र आदि प्रमुख स्रोत हैं |




  • कौटिल्य का अर्थशाख –इसका रचयिता चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री और गुरु चाणक्य था । इस ग्रंथ से नन्द वंश के पतन तथा चन्द्रगुप्त के प्रशासन के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ।
  • गार्गी संहिता- इसमें यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है जो पुष्यमित्र शुंग के काल में हुआ था ।
  •  मुद्रा राक्षस – विशाखदत्त ने इस नाटक की रचना की थी । इसमें चाणक्य की कूटनीति द्वारा नंदवंश की समाप्ति और चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण का वर्णन है ।
  • अष्टाध्यायी तथा महाभाष्य- पाणिनि की अष्टाध्यायी और पतंजलि का महाभाष्य संस्कृत के व्याकरण ग्रंथ हैं लेकिन इनमें राजाओं, गणतंत्रों तथा राजनीतिक घटनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है ।
  • कालिदास के ग्रंथ — कालिदास के ग्रंथों में तत्कालीन समाज का चित्रण मिलता है ।
  • जीवन चरित्र – प्राचीन काल में अनेक राजाओं के जीवन चरित्र लिखे गये जो इतिहास के प्रमुख स्रोत हैं ।

(2) विदेशी साहित्य : विदेशी साहित्य में मुख्य रूप से यूनानी लेखको में हेकाटियस, हेरोडोटस , टीसियस , मैगस्थनीज, स्ट्रेबो इत्यादि कि रचनाओ को लिया जा सकता हैं | चीनी लेखको में सुमाचीन , फाह्यान , ह्वेनसांग इत्यादि की रचना महत्वपूर्ण स्रोत हैं | इसी क्रम में अरब के लेखको में अलबरूनी की ‘तहकीकात – ए-हिन्द’ इस श्रेणी का सर्वप्रमुख स्रोत है । तथा तिब्बती यात्रियों में ‘लामा तारानाथ’ का रचना सर्वप्रमुख है ।




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